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सप्तम परिच्छेद आचरण करना पड़े तो दूषण नहीं । एक तो यह छः वस्तु के आगारों को छ छंडी कहते हैं। तथा चार आगार और भी हैं, सो कहते हैं:
१. "अन्नथ्यणाभोगेणं".-कोई कार्य अजान पने-उपयोग दिये विना और का और हो जावे, अरु जब याद आ जावे, तब वो कार्य फिर न करे।
२. “ सहस्सागारेणं "-अकस्मात् कोई काम करे, अपने मन में जानता है, यह काम मैंने नही करना, परन्तु योगों की चपलता से तथा नित्य के बहुत अभ्यास से जानता हुआ भी यदि विरुद्ध कार्य हो जावे, तो सम्यक्त्व में भंग नहीं।
३. " महतरागारेणं "कोई मोटा लाभ होता है, परन्तु सम्यक्त्व में दूषण लगता है, तथा किसी मोटे ज्ञानी की आना से कमो वेशी करना पड़े, तो यह भी आगार हैं।
४. "सबसमाहिवत्तिआगारेणं".-सर्व समाधिव्यत्यय से किसी बड़े सन्निपातादि रोगों के विकार से बावरा हो जावे, तथा अतिवृद्ध हो जाने से स्मृतिमंग हो जावे, तथा रोगादि के आने पर मन में आध्यान हो जाने से, तथा सर्षादि के डंक मारने से, इत्यादि असमाधि में यह आगार है । इस में सम्यक्त्व तथा व्रत भंग नहीं होता है । परन्तु किसी मूर्ख के कहे सुने से आध्यान में प्राण त्यागने योग्य नहीं ।
कितनेक जिनमत के अनभिज्ञों का यह भी कहना है, कि.