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जैनतत्वादर्श दूसरा "गणामिओगेणं"-गण नाम ज्ञाति तथा पंचायत, वे कहे, कि यह काम तुम ज़रूर करो, नहीं तो ज्ञाति, तथा पंचायत तुम को बड़ा दंड देवेगी, उस वक्त जेकर वो काम करना पड़े, तो सम्यक्त्व में अतिचार नहीं ।
तीसरा "वलाभिओगेणं "-बलवंत चोर म्लेच्छादि, तिन. के वश पड़ने से वो कोई अपनी जोरावरी से अनुचित काम करवावें, तो भी दूषण नहीं ।
चौथा "देवामिओगेणं "-कोई दुष्ट देवता क्षेत्रपालादि व्यंतर शरीर में प्रवेश करके अनुचित काम करावे, तो मंग नहीं। तथा कोई देव तो मरणांत दुःख देवे, तब मन में धैर्य न रहे, मरणांत कष्ट जान कर कोई विरुद्ध काम करना पड़े तो सम्यक्त्व में अतिचार नहीं । ____पांचमा "गुरुनिग्गहेणं"---गुरु सो माता, पितादि उनके
आग्रह से कुछ अनुचित करना पड़े । तथा गुरु कहिये धर्माचार्यादि तथा जिनमंदिर, सो कोई अनार्य गुरुको संकट देता होवे, तथा जिनमंदिर को तोड़ता होवे जिनप्रतिमा को खण्डन करता होवे; सो गुरु निग्रह है । तिनों की रक्षा के वास्ते कोई अनुचित काम करना पड़े, तो सम्यक्त्व में दूषण नहीं।
छठा “ वित्तिकतारेणं "-जब दुष्कालादि आपदा आ पड़े तव आजीविका के वास्ते किसी मिथ्यादृष्टि के अनु-- सार चलना पड़े तथा आजीविका के वास्ते कोई विरुद्ध