SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम परिच्छेद मैं किसी पाखंडी मस्करी ने ऋग्वेदादि वेदों के स्वकपोलकल्पित अर्थ लिखे हैं, सो हमने वाच भी लिये हैं । उनने वेदमंत्रादिकों के ऊपर जो भाष्य बनाया है, उस में मन्त्रों के अर्थों में ऐसा लिखा है कि " अग्निबोट " अर्थात् धुएं की कल से चलने वाले जहाज़ तथा रेलगाड़ी के चलने की विधि, तथा पृथ्वी गोल है, अरु सूर्य के चारों ओर घूमती है, और 1 स्थिर है, इत्यादि जो अंग्रेज़ो ने अपनी बुद्धि के बल से विद्याएं उत्पन्न करी हैं, उन सर्व विद्याओं का वेदों में भी कथन है । अपने शिष्यों को वेद का महत्त्व बताने के वास्ते स्वकपोलकल्पित अर्थ लिख लिये हैं । अरु पूर्व में जो महीधरादि पंडितों ने वेदों के ऊपर दीपिका तथा भाष्य रचे हैं, उन की निंदा अर्थात् मूर्खता प्रगट करी है । वे मूर्ख थे, उन को वेद का अर्थ नहीं आता था । प्रश्नः - पिछले अर्थ छोड़ कर जो नवीन अर्थ करे गये, इस का क्या कारण है ! ३३ उत्तरः --- प्रथम तो वेदों के प्राचीन भाष्य और दीपिका मानने से वेदों की सत्यता अरु ईश्वरोक्तता तथा प्राची * यहां ' पाखण्डी मस्करी' शब्दों से वर्तमान आर्यसमाज के जन्मदाता स्वामी दयानन्दजी सरस्वती अभिप्रेत है। क्योंकि उन्होंने ही दुनिया भर के विद्वानों से अनोखे, वेदों के नाना मनःकल्पित अर्थ किये हैं । जो कि वेद सिद्धात के सर्वथा विरुद्ध हैं । इस के विशेष विवरण के लिये देखो । परि० नं० २ घ ।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy