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जैनतत्त्वादर्श उन मसालों में ऐसी मिलन शक्ति है, कि चाहे सो बनालो। इस वास्ते कोई आज नवी वस्तु देख कर जैन धर्म से चलायमान न होना चाहिये। तत्वार्थ के महाभाष्य में समंतभद्र आचार्य भी लिखते हैं, कि इन्द्रजालिया तीर्थकर के समान बाद सिद्धि सर्व बना सकता है, इस वास्ते किसी वात का चमत्कार देख के जिनवचनों में शंका कदापि न करनी। तथा कितनेक जैनमत वालों को यह भी आश्चर्य है,
कि यदा आर्यावर्त में दो प्रहर दिन होता शास्त्र और है, तदा अमेरिका में अर्द्धरानि होती है अरु उन के अर्थ यदा अमेरिका में दो प्रहर दिन होता है,
तदा आर्यावर्त में अर्द्धरात्रि होती है। कितने लोकों ने घड़ियों के हिसाब से तथा तार की खबरों से इस बात का निश्चय अच्छी तरे से करा हुआ बतलाते हैं। इस बात का उत्तर मैं यथार्थ नहीं दे सकता हूं। मेरी श्रद्धा ऐसी नहीं है कि पूर्व आचार्यों के अनुसरण बिना समाधान कर सकू । क्यों कि मेरी कल्पना से कुछ जैन मत सत्य नहीं हो सकता है, जैनमत तो अपने स्वरूप से ही सत्य बनेगा। जेकर मेरी कल्पना ही सत्य का कारण होवे, तब तो किसी पूर्वाचार्यों की अपेक्षा न रहेगी। तब तो जिस के मन में जो अर्थ अच्छा लगेगा, सो अर्थ कर लेवेगा। जैसे वर्तमान