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जैन तत्वादर्श
हुए, विलाप करते हुए, अरु ऐसे
जीवों ने न तो पूरे जैनमत के शास्त्र पढ़े हैं, और सुने हैं । इस वास्ते उनके मन को जल्द अधीरज हो जाती है । परन्तु अपने घर की सर्व पुस्तकें बिना बाचे, विना सुने, तुच्छ वात के वास्ते एकबार भी जिन धर्म में शंका न लानी चाहिये । क्योंकि यह पूर्वोक्त सर्व वृतांत इन्द्रजाल की पूर्ण विद्या जिस को आती होवे, वो दिखा सकता है । हमने किसी ग्रंथ में ऐसा लिखा देखा है, कि कुमारपाल राजा के समय में एक बोधिदेव नामक ब्राह्मण था । उसने राजा कुमारपाल की श्रद्धा जैन मत से हटाने के वास्ते कुमारपाल से जो प्रथम उनके वंश के मूलराज आदि सात राजा हो गये थे, उन को नरक कुण्ड में पड़े कहते हुए दीख पड़े कि हे पुत्र ! जिस धर्म अंगीकार किया है, उस दिन से हम तेरे सात पुरुष नरक कुण्ड में जा पड़े हैं। जेकर तू हमारा भला चाहे, तो जैन धर्म छोड़ दे । ऐसी बात देख कर राजा कुमारपाल चित्त में घबराया, तब जाकर अपने गुरु श्रीहेमचंद्राचार्य को पूछा, कि महाराज ! यह क्या वृतांत है ! तब श्रीहेमचंद्र आचार्यजीने कहा कि हे राजेंद्र ! ये सर्व इन्द्रजाल की विद्या है, आओ ! मैं भी तुम को कुछ तमाशा दिखाऊं । तब राजा कुमारपाल को मकान के अन्दर के मकान में ले जा कर दिखायाचौबीस तीर्थकर समवसरण में जुदे जुदे बैठे हैं, अरु कुमारपाल क्रे वे ही सात पुरुष तीर्थकरों की सेवा करते हैं । तथा
दिन से तूने जैन