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सप्तम परिच्छेद पद्मप्रभचरित्रादि ग्रंथों में लिखते हैं, कि लंका से इतने योजन पश्चिम दिशा को जावे, तब आठ योजन नीचे पाताल लंका है। जेकर इस प्रमाण योजन होवें, तब तो क्या जाने अमेरिका ही पाताल लंका होवे । अरु नीची जगा होने से बुद्धिमानों को पृथ्वी गोल मालूम पड़ती होवेगी। इसी पाताल लंका की तरे और जगे भी धरती ऊंची नीची होवे, तो क्या आश्चर्य है ! क्योंकि पश्चिम महाविदेह की घरती एक हज़ार योजन ऊंडी (गहरी) लिखी है। इसी तरे
और जगे मी ऊंची नीची धरती के सबब से कुछ और का और दीख पड़े, तो जैनमती को श्री अहंत भगवंत के कहने में शंका न करनी चाहिये। तथा कितनीक पुस्तकों में लिखा देखा और सुना भी
है कि अमेरिकादि मुलकों में ऐसी विद्या प्रेतविद्या निकाली है, कि जिस करके वो दो हजारादि
वर्ष पहिले जो मनुष्य मर गये थे, उनको बुलाते है । अरु उन से उस वक्त का सर्व हाल पूछते हैं, अरु वे सर्व अपनी व्यवस्था बतलाते हैं। परन्तु परोक्ष में उनका शब्द सुनाई देता है, वे प्रत्यक्ष नहीं दीखते हैं । तथा अनेक तरे के तमाशे दिखाते हैं, कि जिन के देखने से अल्पबुद्धियों की बुद्धि अस्तव्यस्त हो जाती है । तब उनके मन में अनेक शंका कंखा उत्पन्न हो जाती हैं। जिस के सबब से अहंतकथित धर्म में अनादर हो जाता है, क्योंकि उन