________________ કાર जैनतत्त्वादर्श अनेक अहंत बिंबों की प्रतिष्ठा करी, और अनेक प्रामः नगरों में धर्म की वृद्धि करी, बड़े प्रभावक हुए। गणि कर्पूरविजयजी के दो शिष्य हुए-१. पण्डित वृद्धिविजय गणि और 2. पण्डित क्षमाविजय गणि। पण्डित क्षमाविजय गणि के शिष्य पण्डित जिनविजय गणि, तिनका शिष्य पण्डित उत्तमविजय श्रीक्षमविजय गणि गणि, तिनका शिष्य पण्डित पद्मविजय गणि, की शिष्यपरम्परा तिनका शिष्य पण्डित रूपविजय गणि, तिनका शिष्य पंडित कीर्तिविजय गणि, तिनका शिष्य पंडित कस्तूरविजय गणि, तिनका शिष्य मुनि मणिविजय गणि, तिनका शिष्य मुनि बुद्धिविजय गणि, तिनका शिष्य पंडित मुक्तिविजय गणि, तिनोंके हाथ का दीक्षित लघु गुरुमाता इस जैनतत्त्वादर्श ग्रन्थ के लिखनेवाला मुनि आत्माराम-आनंदविजय नामक है / अब इस ग्रन्थ के लिखनेवाले के समय में इतने नवीन पंथ निकले हैं, सो लिखते हैं-गुजरात देश लेखककालीन मत में स्वामीनारायण का पंथ, और बंगाल देश में ब्रह्मसमाजियों का पंथ / और पंजाब देश में लुधियाने से दश कोस के अन्तरे एक भयणी नामा गाम है, तिस में रहनेवाला जाति का तरखान सिक्ख, तिस