________________ 541 द्वादश परिच्छेद तथा इकसठमे पाटे जो श्री विजयसिंहसूरि थे तिनके शिष्य श्री सत्यविजयगणि हुए श्रीयशोविजयनी और महोपाध्याय षट्शास्ववेचा, न्याय. उपाध्याय विशारद-विरुदधारक, महावैयाकरण, तार्किक शिरोमणि, बुद्धि का समुद्र महोपाध्याय श्री यशोविजयगणि, इन दोनोंने विजयसिंहसूरि की आज्ञा लेके गच्छ में क्रियाशिथिल साधुओं को देख के और ढूंढक मत के पाखण्ड अंधकार के दूर करने वास्ते क्रिया का उद्धार करा, और जिनोंने काशी के पंडितों से जयपताका का झन पाया, और गुजरात प्रमुख देशों से प्रतिमा-उत्थापक कुलिगियों के मतरूप अंधकार को दूर करा, और जिनों के रचे हुए-अध्यात्मसार, स्याद्वादकल्पलता, शास्त्रवार्तासमुबय की वृत्ति, मल्लवादीसूरिकृत नयचक्र-उद्धारादि अनेक वडे बडे एक सौ ग्रन्थ हैं। श्रीसत्यविजय गणिजी क्रिया का उद्धार करके आनंदघनजी के साथ बहुत वर्ष लग वनवास में रहे, श्रीसत्यविजय गणि और बडी तपस्या योगाभ्यासादि करा / जब बहुत वृद्ध हो गए, जंघा में चलने का बलं न रहा, तब अणहलपट्टन में जा रहे। तिनके उपदेश से तिनके दो शिष्य हुए-१. गणि कर्पूरविजयजी पंडित और 2 पंडित कुशलविजयजी / तिन में गणि कर्पूरविजयजीने वों