________________ द्वादश परिच्छेद अरु ताराचंदादि हुये हैं, जिनों के चेले रतीराम, नंदलाल, हुये / नंदलाल का चेला रूपचंद, रूपचंद का बिहारी, जो कि पंजाब में कोट, जगरावांदि गामों में रहते है। तथा कानजी और धर्मदास छीपी के चेले में से दीपचंद, गुपालजी प्रमुख ये लींबडी, बढ़वान, मोरबी, गोंडल, जैतपुर, राजकोट, अमरेली, धांगधरा प्रमुख झालावाड़, काठियावाड़, मछुकांठा प्रमुख देशो के गामों में फिरते रहते हैं। और धर्मदास छीपी का चेला धनाजी, धनानी का भूदरजी, भूदरजी का रघुनाथजी, जैमलजी, गुमानचंद, दुर्गादास, कन्हीराम, रलचंद, हमीरमल्ल, कचौडीमल्ल प्रमुख जो अब मारवाड़ देश में रहते हैं, सो प्रसिद्ध हैं। और रघुनाथजी का चेला भीखमजी संवत् 1818 में हुआ जिसने तेराहपंथ निकाला। तिसके चेले भारमल, हेमजी, रायचंद, जीतमल्ल / जीतमल की गद्दी ऊपर अब मेघजी है। ये पट्टीबंध जितने साधु हैं। इनका पन्थ संवत् 1709 के साल से चला है। और इनका मत जन से निकला है, तब से लेकर आजपर्यंत इन के मत में कोई विद्वान् नहीं हुआ है। क्योंकि ये लोक कहते हैं कि व्याकरण, कोश, काव्य, छंद, अलंकार पढने से तथा तर्कशास्त्र पढ़ने से बुद्धि मारी जाती है। इस वे इलमी के ही सवव से