________________ 537 द्वादश परिच्छेद में फूटे हटे मकान को 'ढूंढ' कहते हैं, इस वास्ते लोगोंने इनका नाम ढूंढिये रक्खा। इन तीनों को नवे मत चलाने में बडे बडे केश भोगने पडे, परन्तु इनके त्याग को देख के कितनेक ढंके मती इन को मानने भी लगे। क्योंकि यह मेल चाल जगत् में प्रसिद्ध है, और भोले लोक तो ऊपर की छूछां फूफां देख के रागी हो जाते हैं। और गुजरात के बहुत लोक ऐसे हठाग्रही हैं कि जो बात पकड़ लेवें, उस बात को बहुत मुश्किल से छोड़ते हैं। इसी वास्ते जैनमत में कई फिरके गुजरात देश से निकले हैं। पीछे तिस लवजी का शिष्य अहमदाबाद के कालपुरे का वासी ओसवाल सोमजी हुआ, तिसने सूर्य अनुयायी शिष्य की आतापना बहुत करी। तिसके चेलों के परिचार नाम-१. हरिदासजी, 2. प्रेमजी, 3. गिरधरलालनी, 4. कानजी प्रमुख और लुकेमती कुंवरजी के चेले मी इनके शिष्य बने / तिनके नाम-१. श्रीपाल, 2. अमीपाल, 3. धर्मसी, 4 हरजी, 5. जीवाजी, 6. समरथ, 7. तोडुजी, 8. मोहनजी, 9. सदानंदजी, 10. गोधानी थे। एक गुजरात का वासी धर्मदास छौंपीने मुण्डमुण्डा के मुख ऊपर पट्टी बांध के अपने आप को ढूंढिया साधु मशहूर किया / तिन में हरिदास का चेला बूंदावन हुआ, और वृंदावन का चेला मुवानीदास