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________________ जैनतत्वादर्श दरबार में आकर तखत के पास खडे रहनेवालों से अरज करी कि, विजयसेनसूरि तथा विजयदेवसरि और जो अच्छी बुद्धिवाले लोक हैं, तिनकी हर एक जगे तथा हर एक शहर में देहरा अर्थात् जिनमंदिर तथा धर्मशाला हैं। तिनमें ये लोक ईश्वर की भक्ति करते हैं और प्रार्थना करते हैं, और वेखहरख तथा परमानंद यति की परमेश्वर को रानी रखने की हकीकत हमने अच्छी तरें से जान लीनी है। तिस वास्ते दुनियां को ताबे करनेवाला हुकम हुआ कि किसी आदमीने इन जैन लोगों के मन्दिर तथा धर्मशाला में उतरना नहीं, तथा कारण विना अड़चन नहीं करनी / और जेकर ये लोग फिर से नवा बनाना चाहें, तो तिनको किसी तरें की मनाई तथा हरकत नहीं करनी / और तिनके साधुओं के उपाश्रयों में किसीने भी उतरना नहीं। और जो ये लोक सोरठ के मुलक में शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करने वास्ते जावे, तो कोई भी आदमी तिन यात्रालुओं से कुछ न मांगे, लालच न करे। और पूर्वोक्त वेखहरख अरु परमानंद यति की अरज तथा खाहिश ऊपर हुकम बड़ा भारी हुआ कि दर अठवाडे में रविवार तथा गुरुवार तथा दर महीने में शुदि पडिवा का रोज, तथा ईद के दिन, तथा दर वर्ष में नवरोज, तथा माहशहरयुरमा जो हमारा मुबारक दिन है, तिनमें एक एक
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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