________________ જરૂર जैनतत्त्वादर्श श्री आदिनाथ के बिंब तथा श्री अजितनाथ के प्रासाद में श्री अजितनाथ के बिंबों की प्रतिष्ठा करके अर्बुदाचल में यात्रा करने को गये। और पीछे शांतिचंद्र उपाध्यायने नवीन कृपारस कोश नामा ग्रन्थ बना के अकबर बादशाह को सुनाया, तिसके सुनने से बादशाहने दया की बहुत वृद्धि करी / तिसका स्वरूप यह है-बादशाह के जन्म के दिन से एक मास अरु पर्युषणा के बारां दिन, तथा सर्व रविवार, तथा सर्वसंक्रांति के दिन, नवरोज का मास, सर्व ईद के दिन, तथा सर्व मिहर वासरा, सर्व सोफीअना दिन इत्यादि सब मिलकर एक वर्ष में छ महीने तक जीवहिंसा बंद कराई। तिसके फरमान लिखवाए, सो फरमान अबतक हमारे लोगों के पास हैं। इस में कुछ शंका नहीं कि श्री हीरविजयसूरिजीने जैनमत की वृद्धि और उन्नति बहुत करी। मुसलमानों को भी जिनोंने दयावान् करा / तथा स्थंमतीर्थ में संवत् 1646 में स्थंभतीर्थवासी शा. तेजपाल के बनवाये मंदिर की प्रतिष्ठा करी। 59., श्री हीरविजयसूरि पट्टे श्री विजयसेनसूरि हुए, इन का 1604 में जन्म, 1613 में माता पिता श्री विजयसेनसूरि सहित दीक्षा, 1626 में पंडित पद, 1628 ___ में उपाध्याय पद पूर्वक आचार्य पद, 1652 में भट्टारक पद, 1671 में स्थंमतीर्थ में स्वर्गवास / जिनके