________________ द्वादश परिच्छेद 531 जगें, जो मैंने श्री हीरविजयसूरि आचार्य को दीनी हैं, परंतु हकीकत में ये पूर्वोक्त सर्व जगें जैनश्वेतांबर धर्मवालों की ही है / और जहां तक सूर्य से दिन रौशन रहे, तथा जहां तक चन्द्रमा से रात रोगन रहे, तहां तक इस फरमान का हुकम जैनश्वेतावरी धर्म के लोकों में सूर्य तथा चन्द्रमा की तरे प्रकाशित रहे / और कोई आदमी तिनको हरकत न कर, और किसी आदमीने तिन पहाड़ों के ऊपर तथा तिनके नीने तथा तिनके आसपास पूजा की जगे में, तथा तीर्थ की जगे में जानवर नही मारना, और इस हुकम ऊपर अमल करना, इस हुकम से फिरना नहीं। तथा नवीन सनद मागनी नहीं-लिखा तारीख 7 मी माह उरदी बहेस मुताविक माह रचीयुल-अब्बल सन् 37 जुलसी-यह अकबर बादशाह के दिये फरमान की नकल है / तथा थानसिंह की कराई अपर साह दूजणमल्ल की कराई श्री फतपुर में अनेक लाख रुपैये लगा के बड़े महोसब से श्री जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करी / प्रथम चातुर्मास आगरे में कग, दूसरा फतेपुर में करा, तीसरा मिराम नाम नगर में करा, चौथा फिर आगरे में करा / फिर वहां वादगाह की गोष्ठि वास्ते श्री शांतिचन्द्र उपाध्याय को छोड़ गये, और आप गुरुजी मेहडते, नागपुर चौमासा करके सिरोही नगर में गये / तहा नवीन चतुर्मुख प्रासाद. में