________________ 530 जैनतत्त्वादर्श करी / अब ये बहुत दूर से हमारे पास आये हैं, और इन की अरज वाजबी और सच्ची है। यद्यपि यह अरज मुसलमानी मजहब-मत से विरुद्ध मालूम होती है, तो भी परमेश्वर के पिछाननेवाले आदमियों का यह दस्तूर होता है कि, कोई किसी के धर्म में दखल न देवे, और तिनोंके रिवाज बहाल रक्खे / इस वास्ते यह अरज मेरी समझ में सच्ची मालूम हुई, क्योंकि सर्व पहाड़ तथा पूजा की जगा बहुत अरसे से जैन श्वेतांबरी धर्मवालों की है, तिस वास्ते इनकी अरज कबूल करी गई कि, सिद्धाचल का पहाड़ तथा गिरनार का पहाड़, तथा तारंगाजी का पहाड़, तथा केशरियाजी का पहाड़ तथा आबु का पहाड़ जो गुजरात के मुलक में है, तथा राजगृह के पांच पहाड़ तथा समेतशिखर उरफे पार्श्वनाथ का पहाड़, जो बंगाल के मुलक में है, ये सर्व पूना की जगें, तथा पहाड़ नीचे तीर्थ की जर्गे, जो मेरे राज्य में हैं, चाहे किसी ठिकाने जैन श्वेतांवरी धर्म की जगें होवें, सो श्री हीरविजय जैनश्वेतांबरी आचार्य को देने में आई हैं, और इनों में अच्छी तरे से परमेश्वर की भक्ति करनी चाहिये / और एक बात यह भी याद रखनी चाहिये कि, ये जैनश्वेतांबरी धर्म के पहाड़ तथा पूजा की जगें तथा तीर्थ की