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________________ बादश परिच्छेद 529 अमानत है / और विशेष करके वृद्ध अवस्था में मेरा यही इरादा है कि, मेरा भला वांछनेवाली रैयत मुखी रहे। तिस वास्ते हरेक धर्म के लोगों में से जो अच्छे विचारवाले परमेश्वर की भक्ति करने में अपनी उमर पूरी करते हैं, तिनको दूर दूर देशों से मैंने अपने पास बुलवाया / और तिनकी परीक्षा करके अपनी सोबत में रखता हूं, और तिनकी बातें सुन के मैं बहुत खुश होता हूं। तिस वास्ते हमारे सुनने में आया है कि, श्री हीरविजयसूरि जैन श्वेतांवर मत का आचार्य गुजरात के वंदरों में परमेश्वर की भक्ति करता है। मैंने तिनको अपने पास बुलवाया, और तिनकी मुलाकात करके हम बहुत खुश हुए। कितनेक दिन पीछे जब तिनोंने अपने वतन जाने की रजा मांगी, तब अरज करी कि गरीवपरवर की मरजी से ऐसा हुकुम होना चाहिये कि, सिद्धाचलनी, गिरनारजी, तारंगाजी, केसरियानाथजी, तथा भावुजी का पहाड़, जो गुजरात में है, तथा राजगृह के पांच पहाड़ तथा समेतशिखर उरफे पार्श्वनाथजी जो बंगाल के मुलक में है, तथा पहाड़ के हेठली सर्व मंदिरों की कोठियों तथा सर्व भक्ति करने की जगों में, तथा तीर्थ की जगों में और जो जैन श्वेतांबर धर्म की जगें मेरे तावे के सर्व मुलकों में जिस ठिकाने होवें, उन पहाडों तथा मंदिरों के आसपास कोई भी आदमी किसी जानवर को न मारे, यह भरज
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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