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________________ 528 जैनतत्त्वादर्श गुरुजी अनेक वार मिले और अनेक जिनमन्दिर अरु उपाश्रयों के उपद्रव दूर करे। और जब श्री हीरविजयसूरि अपर देश को जाने लगे, तब बादशाह से ऐसा फरमान लिखवा ले गए / तिस की नकल मैं इस पुस्तक में लिखता हूं। जलालुद्दीन महम्मद अकवर बादशाह गाजी का फरमान अकवर मोहर की वनावली जलालुद्दीन अकवर वादशाह हुमायु वादशाह का वेटा वावरशाह का विन-वेटा उमरशेख मिरज़ा का वेटा सुलतान अवुसईद का बेटा सुलतान महम्मदशाह का बेटा मीर शाह का बेटा अमीर तैमुरसाहिब किरान का वेटा सवे मालवा तथा अकवरावाद, लाहौर, मुलतान, अहमदाबाद, अजमेर, मीरत, गुजरात, बंगाल, तथा और जो मेरे तावे के मुलक हैं, हाल तथा आयंदा मुतसद्दी, सूबा, करोरी तथा जगीरदार इन सवों को मालूम रहे कि, हमारा पूरा इरादा यह है कि सर्व रैयत का मन राजी रखना / क्योंकि रैयत का जो मन है, सो परमेश्वर की एक बड़ी
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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