________________ द्वादश परिच्छेद 127 करके गुरुजीने कहा कि तेरे सर्वराज्य में पर्युषणों के आठ दिनों में कोई जानवर न मारा जाय, और बंदिजन छोडे जाएं, मैं यह मांगना चाहता हूं। तब बादशाहने गुरु को निर्लोभ, शांत, दांत जान करके कहा कि आठ दिन तुमारी तर्फ से और चार दिन मेरी तर्फ ले सर्व मिल कर बारह दिन तक अर्थात् भाद्रवावदि दशमी से लेकर भाद्रवाशुदि छठ तक कोई जानवर न मारा जायगा। पीछे बादशाहने सोने के हफों से लिखवा कर छ फरमान गुरुजी को दिए, छ फरमान की व्यक्ति ये हैं:प्रथम गुर्जरदेश का, दूसरा मालवे देश का, तीसरा अजमेर देश का, चौथा दिल्ली फतेपुर के देश मकबर महाराजाके का, पांचमा लाहौर मुलतान मण्डल का, मोवहिंमा निषधक और छठा गुरु के पास रखने का / पूर्वोक्त फरमान पांचों देश का साधारण फरमान तो तिन तिन देशों में भेज के अमारि पटह बजवा दिया / तब तो वादगाह की आज्ञा से जो नहीं भी जानते थे, ऐसे सर्व आर्य अनार्य कुल मंडप में दयारूपी वेलडी विस्तार को प्राप्त हो गई। और बंदिजन भी चादशाहने गुरु के पास से उठ कर तत्काल छोड़ दिये। और एक कोश की झील अर्थात् तालाब में आप जा कर बादशाहने अपने हाथसे नाना जाति के नाना देशवालोंने जो जो जानवर बादशाह को मेट करे हुए थे, वे सर्व छोड़ दिये / बादशाह से