________________ 522 जैनतवादर्श तब लघु वय में शील करके स्थूलिभद्र समान वैराग्यनिधि निःस्पृहावधि जावजीव जघन्य से जघन्य भी षष्ठ अर्थात् दो दिन का उपवास करना / अरु पारने के दिन आचाम्ल करना / ऐसे अभिग्रहधारी महोपाध्याय विद्यासागर गणिने मारवाड़ देश में विहार करा / तिनोंने जैसलमेरादिकों में खरतरा को और मेवात देश में बीजामतियों को और मोखी आदिक में लुकामतियों को प्रबोध के श्रावक बनाए सो आजतक प्रसिद्ध है। तथा पार्श्वचन्द्र के व्युग्राहे वीरमगाम में पार्श्वचन्द्र के साथ वाद करके पाचचंद्र को निरुत्तर करा / तब बहुत जनोंने जैनधर्म अंगीकार करा / ऐसे ही मालवे में अरु उज्जैनी प्रमुख देशों में फिर के धर्म की प्रवृत्ति करी, यह विद्यासागर उपाध्यायजीने तपगच्छ की फिर वृद्धि करी, और क्रियोद्धार करा / पीछे आनन्दविमसूरिजी चौदह वर्ष तक जघन्य से भी नियत तप वर्ज के बेले से कम तप नहीं करा / तथा जिनोंने चतुर्थ, षष्ठ तप करके वीसस्थानक की आराधना करी। यह सम्वत् 1596 के वर्ष नव दिन का अनशन करके स्वर्ग गए / 57. श्रीआनन्दविमलसूरि के पाट पर विजयदानसूरि हुए। जिनोंने स्तंभतीर्थ, अहमदाबादपत्तन, श्रीविजयदानसूरि महीशानकगाम, गंधार बंदरादि में महा ___ महोत्सवपूर्वक अनेक जिनबिंबों की प्रतिश करी। तथा जिनों के उपदेश से बादशाह महम्मद