________________ 521 द्वादश परिच्छेद चारी भी थे, तो भी तिनके वैराग्यरंग का भंग नहीं हुआ। और जब उनोंने देखा कि जिनप्रतिमा के निषेधने वाले बहुत बढे, और शुद्ध साधु तुच्छमात्र रह गए, अरु उत्सूत्रप्ररूपणरूप जल में भव्यजन बह चले; तव मन में दयादृष्टि ला के और अपने गुरु की आज्ञा से कितनेक संविम साधुओं को साथ ले कर सम्वत् 1582 में शिथिलाचार परिहाररूप कियोद्धार करा / देश में विचर के बहुत भव्यजनों का उद्धार करा, और अनेक इभ्यों के पुत्रों को धन कुटुंब का मोह साग करा के दीक्षा दीनी। और सोरठ के राजा पासों खत लिखवाया कि जो जीते सो मेरे देश में रहे अरु नो हारे सो निकाला जावे / तूणसिंह नामा श्रावक जिसको पादशाहने बैठने वास्ते पालकी दी हुई थी, और बादशाहने जिसको मलिक श्रीनगदल विरुद दिया था, ऐसे तूणसिंह श्रावकने गुरु को विनति करी कि साधुओं को सोरठ देश में विहार कराओ / तब गुरुजीने गणि जगर्षि को साधुओं के साथ सोरठदेश में विहार कराया। तथा जेसलमेरादि मारवाड़ देश में जल दुर्लभ मिलता है, इस वास्ते पूर्व में सोमप्रभसूरिने साधुओं को मने कर दिया था कि मारवाड़ में न जाना / सो विहार कुमतिव्याप्त न हो जावे, तिन जीवों की अनुकंपा करके और लाम जान कर साधुओं को आज्ञा दीनी कि तुम मारवाड़ में जा कर कुमतिमत को खण्डन करो।