SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 120 जैनतत्त्वादर्श 54. श्रीलक्ष्मीसागरसूरि पट्टे सुमतिसाधुसूरि हुआ / 55. श्रीसुमतिसाधुसूरि पट्टे हेमविमलसूरि हुए। शिथिल साधुओं के बीच में भी रहे, तो भी श्री हेमविमलसूरि जिनोंने साधु का आचार उल्लंघन न करा। तब कितनेक दिन पीछे बहुत साधुओंने शिथिलपना छोड़ा / तथा ऋषि हरगिरि, ऋषि श्रीपति, ऋषि गणपति प्रमुख बहुत जनोंने लुपक मत छोड़ के श्री हेमविमलसूरि के पास दीक्षा लीनी। तिस अवसर में सम्वत् 1562 में कड्डये नामक एक बनियेने कड्डया मत निकाला और तीन थूई मानी, अरु इस काल में साधु कोई भी नहीं दीखता, ऐसा पंथ निकाला। परन्तु इस ग्रन्थ के लिखनेवाले के समय में यह मत नहीं है, व्यवच्छेद हो गया है / तथा सम्वत् 1570 में डंका मत से निकल के बीजा नामा वेषधरने वीजामत चलाया, जिस को लोक विजय गच्छ कहते हैं। तथा सम्वत् 1572 में नागपुरीया तपगच्छ से निकल के उपाध्याय पार्श्वचन्द्रने अपने नाम का मत अर्थात् पासचंदीया मत चलाया। 56. श्रीहेमविमलसूरि पट्टे सुविहितमुनिचूड़ामणि कुमत तम के मथने को सूर्यसमान आनन्दविमलआनन्दविमलसूरि सूरि हुआ। तिसका विक्रम सम्वत् 1547 और क्रियोद्धार में जन्म, 1552 में दीक्षा, 1570 में सूरिपद / तथा आनन्दविमलसूरि के साधु शिथिला
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy