________________ द्वादश परिच्छेद कुयुक्ति से और के और सुनाने लगा, अरु कहने लगा कि, एकतीस शास्त्र सच्चे हैं। तिन में भी आवश्यकसूत्र को बिस्कुल विगाड़ के लोगोंने स्वकपोलकल्पित और का और बना दिया है, क्योंकि आवश्यक में बहुत जगह जिनप्रतिमा का अधिकार चलता है। पीछे एक दिन तिस लुंके को किसीने कहा कि बिना जैनदीक्षा के लिये शास पढ़ने का तो व्यवहार सूत्र में निषेध करा है, तो फिर तुम गृहस्थ होकर शास्त्र क्यों पढ़ते हो ! तव लुंकेने कहा कि मैं व्यवहार सूत्र को ही सच्चा नहीं मानता हूं / इत्यादि प्ररूपणा पच्चीस वर्ष तक करी, परन्तु लुके के उपदेश से साधु कोई मी न हुआ / जब सम्वत् 1533 का साल आया तव एक माणा नामा बनिये के वेटेने लुक के उपदेश से वेष पहना, उसको ऋषि भूणा नाम दीना / तिसका शिष्य सम्वत् 1568 में रूपजी हुआ, तिसका शिष्य सम्वत् 1578 में जीवाजी ऋषि हुआ, तिसका शिष्य 1587 में वृद्धवरसिंहजी हुआ, तिसका शिष्य सम्वत् 1606 में वरसिंहजी हुआ, तिसका शिष्य सम्वत् 1649 में जसवंतनी हुआ / इस लंपक मत के तीन नाम हुए 1. गुजराती, 2. नागोरी, 3. उतराधी। 53. श्री रलशेखरसूरि के पाट पर लक्ष्मीसागरसूरि हुए / तिनका 1464 में जन्म, 1490 में दीक्षा, 1501 में वाचक पद, 1508 में सरिपद /