________________ 518 जैनतत्त्वादर्श पत्रे बिना लिखे छोड़ दिये / जब पुस्तकवालेने पुस्तकं देखा, तब पूछा कि इस पुस्तक के सात पत्रे क्यों छोड़ दिये ! तंब लुका उसके साथ लड़ने लगा। तिस समय लोगोंने मार-पीट के उपाश्रय से बाहिर निकाल दिया, और नगर में कह दियां कि, इस से कोई जन भी पुस्तक न लिखावे, तब लुका लाचार हो और क्रोध में भरकर अहमदाबाद से छैतालीस कोस के लगभग नींबडी प्राम में चला गया। उस ग्राम में लुंके की बिरादरी का एक लखमसी नामा बनिया राज में कारभारी था। तिसके आगे बहुत रोया-पीटा। जब तिसने पूछा क्या हुआ ? तब लंकेने कहा कि, मैं भगवान् का सच्चा मत कहने लगा था श्रावकोंने मुझे पीटा। अब मैं तेरे पास आया हुँ, जेकर तू मेरा मददगार बने, तो मैं सचा मतं प्रगट करूं। तवं तिस लखमसीने कहा कि, नींबडी के राज्य में तू बेशक अपने सच्चे मत को प्रगट कर, मैं तेरा मददगार हूं, खाने पीने को भी दूंगा, और तेरा शास्त्र भी सुनूंगा। तब लुका तो श्रीमहावीर के साधुओं की और जिनप्रतिमा की उत्थापना करने लगा, अरु कहने लगा कि, यह साधु नहीं हैं, भ्रष्टाचारी हैं, निर्दयी हैं। उलटा ज्ञान सुनाते हैं, इत्यादि जो आप के मनमानी सो निंदा करी / और शांखों में से भी जिन जिन शास्त्रों में जिनप्रतिमा का ज़िकर नहीं था, उन शास्त्रों को सच्चा माना और जिन में थोड़ा सा जिंनप्रतिमा का कथन था, तिन पाठों के अर्थ