________________ द्वादश परिच्छेद प्रवृत्त करी तीड का उपद्रव टाला। इनका विक्रम संवत् 1436 में जन्म, 1443 में दीक्षा,१४६६ में वाचक पद, 1478 में वत्तीस सहस रूपक खरच के वृद्ध नगरी के शाह देवराजने सरि पद का महोत्सव करा, 1503 में कार्तिकशुदि पडिवा के दिन स्वर्गवास हुआ। 52. श्री मुनिसुंदरसूरि पट्टे श्री रत्नशेखरसूरि हुए, तिनका 1457 वर्षे जन्म, 1463 वर्षे दीक्षा, श्री ग्लशेखर- 1483 वर्षे पंडितपद, 1493 वर्षे वाचक पद, हि 1502 वर्षे सूरिपट, 1517 वर्षे पोष वदि छह के दिन स्वर्गवास हुआ। जिनको स्तंमतीर्थ में बांबी नामा भट्टने वालसरस्वती नाम दिया / तिनके करे ग्रंथश्राद्ध प्रतिक्रमणवृत्ति, श्राद्धविधिसूत्रवृत्ति, लघुक्षेत्रसमास, तथा आचारपदीपादि अनेक ग्रंथ जान लेना। तथा जिन्हों के समय में लुका नामक लिखारीने संवत् 1508 में जिनप्रतिमा का उत्थापक लुका नामा मत चलाया और तिसके मत में वेप का धरनेवाला संवत् 1533 में भाणा नामा प्रथम साधु हुआ है। इस मत की उत्पत्ति ऐसे हुई है। गुजरात देश में अहमदाबाद में जाति का दशाश्रीमाली लुका नामक लिखारी वसता था, सो ज्ञानजी लंका मत की यति के उपाश्रय में पुस्तक लिख कर उसकी उत्पत्ति आमदनी से गुजारा करता था। एक दिन एक पुस्तक को लिख रहा था, तिस में से सात