________________ 516 . जैनतत्वादर्श जिनसुन्दरसूरि, ये चार जिन के प्रतापी शिष्य हुए। जिनोंने ' राणकपुर में श्री धनकृत चौमुख विहार में ऋषभादि अनेक शत बिंब प्रतिष्ठित करे। यह विक्रम संवत् 1499 में स्वर्ग गये। __ 51. श्री सोमसुंदरसूरि पट्टे मुनिसुंदरसूरि हुये, जिन्होंने / अनेक प्रसाद, पद्मचक्र, षट्कारक, क्रियागुश्रीसोमसुंदरसूरि सक, अर्द्ध भ्रम, सर्वतोभद्र, मुरज, सिंहासन, अशोक, मेरी, समवसरण, सरोवर, अष्टमहापातिहार्यादि नवीन त्रिशतिबंध तर्क प्रयोगादि अनेक चित्राक्षर, द्वयक्षर, पंचवर्ग परिहारादि अनेक स्तवमयस्त्रिदशतरंगिणी नामा एक सौ आठ हाथ लम्बी पत्रिका लिख के श्री गुरु को भेजी / तथा चातुर्वेद्यविशारद्यनिधि, उपदेशरलाकर प्रमुख अनेक ग्रंथों का कर्ता / तथा जिनको श्री स्तंभतीर्थ में दफरखानने ' वादीगोकुलसंड ' ऐसा कहा, तथा जिन्होंने दक्षिण में कालसरस्वती ऐसा बिरुद पाया / आठ वर्ष गणनायक, पीछे तीन वर्ष युगप्रधान पद लोगोंने प्रसिद्ध करा / एक सौ आठ वर्तुलिकानादौपलक्षक, बाल्यावस्था में भी एक सहस नवीन श्लोक कण्ठ कर लेते थे। तथा संतिकर नामा समहिम स्तवन करने से योगिनीकृत मरी का उपद्रव दूर करा / चौबीस वार विधि से सूरिमन्त्र को आराधा, तिनमें भी चौदह वार जिनके उपदेश से धारादि नगरियों के स्वामी पांच राजाओंने अपने अपने देशों में अमारी का ढिंढोरा फिराया। तथा सिरोही देश में सहस्रमल्लराजाने भी अमारी :