________________ 514 जैनतत्त्वादर्श संवत् 1380 में जन्म, 1392 के आषाढ सुदि सातम शुक्रवार के दिन धारानगरी में व्रतग्रहण, 1420 में सूरिपद, 1441 में स्वर्ग गये। तिनके करे ग्रंथ-१. थूलभद्रचरित्र, 2. देवाः प्रभोयं प्रमुख रूवन है। 49, श्री सोमतिलकसरि पट्टे देवसुन्दरसूरि हुए। तिनका 1396 वर्षे जन्म, 1404 वर्षे दीक्षा, श्रीदेवसुन्दररि 1420 वर्षे अणहलपत्तन में सूरिपद / यह देवसुन्दरसूरि बड़ा योगाभ्यासी और मंत्र तंत्र की ऋद्धि का मन्दिर, स्थावर जंगम-विषापहारी, जलानल, व्याल अरु हरि-भय का तोड़नेवाला, अतीतानागत निमित्त का वेता, राजमंत्री प्रमुखों का पूज्य / इस देवसुन्दरसूरि के शिष्य--१. ज्ञानसागरसूरि, 2. कुलमंडनसरि, 3. गुणरत्नसूरि, 4. सोमसुंदरसूरि, 5. साधुरनसूरि, यह पांच बड़े शिष्य थे। तिन में श्री ज्ञानसागरजी का 1405 में जन्म, 1417 में दीक्षा, 1441 में सूरिपद, 1460 में स्वर्गगमन / तिन के करे ग्रंथ-आवश्यक, ओपनियुक्त्यादि अनेक ग्रंथावचूरी, मुनिसुव्रत स्तवन, धनौधनवखण्ड पार्श्वनाथादि स्तवन / / दूसरे श्री कुलमंडनरिजी का 1409 में जन्म, 1417 में दीक्षा, 1442 में सूरिपद, 1455 में स्वर्गगमन / तिनों के करे ग्रंथ-सिद्धांतालापकोद्धार, विश्वश्रीधरेत्यादि, अष्टादशारचक्रबंधस्तव, गरीयो और हारस्तवादय है।