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सप्तम परिच्छेद करनी है, वह हमेशा के वास्ते दुरुस्त नहीं। क्या जाने देशों की क्या क्या व्यवस्था बदल चुकी है ! और क्या क्या बदलेगी ! इस का पूरा स्वरूप तो सर्वज्ञ जान सकता है।
तथा इस पृथ्वी को भूगोल कहते हैं । अरु यह भी कहते है कि सूर्य नहीं फिरता, किंतु पृथ्वी सूर्य के इर्द गिर्द घूमती है। यह वात कुछ अंग्रेज़ों ही ने नहीं निकाली है, किंतु अंग्रेजों से पहिले भी इस बात के मानने वाले भारत वर्ष में थे। क्योंकि जैनमत का शीलांगाचार्य जो विक्रम के ७०० वर्ष में हुआ है, वे आचार्य आचारांग सूत्र की वृत्ति में लिखते हैं,* कि कितनेक ऐसा भी मानते हैं, कि भूगोल फिरता है, अरु सूर्य स्थिर रहता है। परन्तु यह मत जैनियों का नहीं है। उनके शास्त्रों में तो प्रगट लिखा है, कि सूर्य चलता है, अरु पृथ्वी स्थिर रहती है । और सूर्य के प्रमण करने के एक सौ चौरासी मंडल आकाश में हैं। उन मंडलों में प्रवेश करना, अरु दिनमान, रात्रिमान का घटना बढ़ना, अरु मौसमों का बदलना, ग्रहण का लगना, सूर्य के अस्त उदय होने में मतों का विवाद, इत्यादि सर्व वाते सूर्यप्रज्ञप्ति वा चंद्रप्रज्ञप्ति शास्त्रों के पढ़ने से अच्छी तरह मालूम पड़ जाती हैं।
*भूगोलः केपांचिन्मतेन नित्यं चलन्नेवास्ते, आदित्यस्तु व्यवस्थित
[२०६ मा ८.सू. १९९]
एव।