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________________ २६ जैनतस्वादर्श गरम देशों का विभाग किया है । यद्यपि उन के देखने सुनने मूजब तथा उनके अनुमान के अनुसार वर्तमान समय में ऐसा ही होवेगा; परंतु सदा ऐसा ही था, यह कहना ठीक नही । क्यों कि भूगोलहस्तामलक पुस्तक में लिखा हैं, कि रूस देश के उत्तर के पासे ( तरफ ) जहां बर्फ के सिवाय और कुछ भी नहीं है, तहां गरमी के दिनों में बर्फ के गलने से तथा किसी जगे बर्फ़ के करार गिर पड़ने से उसके हेठ (नीचे) से एक किसम के हाथी निकलते हैं, सो भी सैंकड़ो हज़ारों निकलते हैं, जिन का नाम उस देश वाले मेमाथ कहते हैं । अब बड़ा आश्चर्य तो इन मेमाथों के देखने से यह होता है, कि ये जानवर गरम मुलकों के रहने वाले हैं, अरु यह सरद मुलक में कहां से आये ! अरु इन के खाने वास्ते भी कुछ नहीं । इस काल में जो एक भी हाथी उस मुलक में जा कर बांधें, तो थोड़े से काल में मर जायगा । तो ये लाखों मेमाथ इस मुलक में क्योंकर जाते होंगें ! और क्या खाते होंगे ! इस में यही कहना पड़ेगा कि किसी समय में यह मुलक गरम होवेगा पीछे पवन की तासीर सरद मुलक हो गया । इस वृतांत से यह सिद्ध कि जो सरद मुलक हैं, वे गरम हो सकते हैं, अरु जो गरमं मुलक हैं, वे किसी काल में सरद हो जाते हैं । इस वास्ते मूगोल के अनुसार जो सरदी गरमीं की व्यवस्था की कल्पना बदलने से होता हैं,
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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