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सप्तम परिच्छेद
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उसका नाम ग़ज़नी प्रसिद्ध हुआ । जैनियों की श्रद्धा के अनुसार प्रथम आरे को अरु ऋषभदेव तथा भरत राजा के समय के व्यतीत होने में असंख्य वर्ष व्यतीत हो गये हैं । तो फिर नदी, पर्वत, देश, नगरों के उलट हो जाने में क्या आश्चर्य है ! और समुद्रका देशों पर फिर जाना तो तौरेत ग्रन्थ से भी ठीक ठीक सिद्ध होता है । तथा पुराणादि ग्रन्थों में भी लिखा है, कि कोई ऐसा समय भी था कि समुद्र में पानी नहीं था, पीछे से आया है। इस वास्ते शत्रुंजयमाहात्मय में जो लिखा है कि भरत क्षेत्र में समुद्र का पानी सगर चक्रवतीं लाया है, सो कहना ठीक है ।
तथा तपगच्छ के आचार्य श्री विजयसेनसूरि अपने प्रश्नोवरदाम अरु प्रभासक नामक बाहिर के समुद्र में हैं। इस जब षट् खण्ड
यह समुद्र का
तर में लिखते हैं, कि मागध, तीन जो तीर्थ हैं, सो जगत के से भी यही सिद्ध होता है, कि भरत चक्रवर्ती अरु मागधादि तीर्थों के साधने को गये थे, तब पानी रस्ते में नहीं था । तथा शास्त्रकारो ने तो सर्व शास्त्रों की शैली श्री ऋषभदेव के कथनानुसार रक्खी है । इस वास्ते चक्रवर्ती आदि का कथन भरत चक्रवर्त्ती के सरीखा कह दिया है ।
तथा इस काल कितनेक विद्वानों ने भूगोल के हिसाब से जो कुतव बनाये हैं, और उनके अनुसार सरद तथा