________________ जैनतत्त्वादर्श, कर भीतों पर लिख के दिखाई। तब तिसने बड़ा चमत्कार पाया / गुरुजीने तिसको प्रतिबोध के जैनी करा, ये धर्मघोषसूरि विक्रम सम्वत् 1357 में स्वर्ग गये। 47. श्री धर्मघोषसूरि पट्टे श्री सोमप्रभसूरि हुये, जिनोंने नमिऊण मणइ एवमित्यादि आराधना श्री सोमप्रमसूरि सूत्र करा / तिनका सम्बत् 1310 में जन्म, 1321 में दीक्षा, 1332 में सूरिपद / जिनों के ग्यारह अंग सूत्रार्थ कण्ठ थे, तथा "गुरुभिर्गीयमानायां मन्त्रपुस्तिकायां यच्छतचरित्रं मंत्रपुस्तिकां च" ऐसा कह कर तिस मन्त्रपुस्तिका को ग्रहण करा, क्योंकि अपर कोई योग्य नहीं था। इस सोमप्रमसूरिने जलकुंकणदेश में अप्काय की विराधना के भय से, और मरुदेश में शुद्धजल की दुर्लभता से साधुओं का विहार निषेध करा / तथा भीमपल्ली में दो कार्तिक मास हुये, तव सोमप्रमजी प्रथम कार्तिक को एकादशी को विहार कर गए। क्योंकि उनोंने जाना कि भीमपल्ली का भंग होगा। अरु भंग हुए पीछे जो रहे वो दुःखी हुए। सोमप्रमसूरि के करे ग्रंथ-जीतकल्पसूत्र, यत्राखिलेत्यादि स्तुतियां, जितेन येनेति स्तुतियां, श्री. मच्छर्मेत्यादि / तिनके करे बडे शिष्य-विमलप्रमसूरि, परमानंदसूरि, पद्मतिलकसूरि, अरु सोमविमलसूरि थे। जिस दिन पूर्वोक्त धर्मघोषसूरि दिवंगत हुए, तिस दिन ही 1357 में सोमप्रभसूरिजीने विमलप्रभसूरि को