________________ द्वादश परिच्छेद 501 आचार्यने ज्ञान से जाना कि इस पुरुष के व्रत का मंग हो जावेगा, इस भय से निषेध करा / पीछे ये पृथ्वीधर मंडपाचल के राजा का मन्त्री हुआ, और धन करके तो धनद समान हो गया / पीछे तिसने चौरासी जिनमन्दिर और सात ज्ञान की पुस्तकों के भण्डार बनाये। और शत्रुजय में इक्कीस घडी प्रमाण सोना खरच के रूपामक श्री ऋषभदेवजी का मंदिर बनवाया। कोई कहते हैं कि छप्पन घडी सुवर्ण खरच के इन्द्रमाला पहरी / तथा धरती नगर में किसी साधर्मीने ब्रह्मचारी का वेष देने के अवसर में पृथ्वीधर को महाधनाढ्य जान के तिसक्री भेट करा ! तब पृथ्वीधरने वही वेष लेकर तिस दिन से बत्तीस वर्ष की उमर में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करा / तिसके एक ही जांजण नामक पुत्र था, जिसने शत्रुजय, उज्जयन्तगिरि के शिखर ऊपर बारह योजन प्रमाण सुवर्ण रूपामय एक ही ध्वजा चढ़ाई। जिसने सारंगदेव राजा से कर्पूर का महसूल छुडाया, तथा जिसने मंडपाचल में बहत्तर हजार (72000) रूपक गुरु के प्रवेश के उत्सव में खरच करे।। __ तथा श्री धर्मघोषसूरिने देवपत्तन में शिष्यों के कहने से मंत्रमय स्तुति बनाई। तथा देवपचन में जिनों के स्वध्यान के बल से नवीनोत्पन्न हुये कपर्दी यक्षने वज्रस्वामी के माहात्म्य से पुराने कपर्दी मिथ्यादृष्टि को निकाला था। इनोंने उसको प्रतिबोध के ,जैनर्विबों का अधिष्ठाता करा /