________________ जैनतत्वादर्श तिसके अनुज भीमसिंह को धर्मकीर्ति उपाध्याय की पदवी तीनी / तिस अवसर में प्रहादनविहार के सौवर्ण कपिशीर्ष मंडप से कुंकुम की वर्षा हुई, तब सर्व लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। श्री विद्यानंदमूरिने विद्यानंद नाम नवीन व्याकरण बनाया / यदुक्तम् विद्यानंदाभिधं येन कृतं व्याकरणं नवम् / भाति सवोत्तम स्वल्पसूत्रं वह्वर्थसंग्रहम् / पीछे श्री देवेंद्रसूरिजी फिर मालवे को गये / देवेंद्रसूरिजी के करे हुये ग्रंथों का नाम लिखते हैं:-१. श्राद्धदिन. ऋत्यसूत्रवृत्ति, 2. नव्यकर्मग्रंथपासूत्रवृत्ति, 3. सिद्धपंचाशिकासूत्रवृत्ति, 4. धर्मरत्नवृत्ति, 5. सुदर्शनचरित्र, 6. तीन साप्य, 7. दारवृत्ति, 8. सिरिउम्सहवद्धमाण प्रमुख स्तवन / कोई कहते हैं कि श्राद्धदिनकृत्यसूत्र तो चिरंतन आचार्यों ना करा है / विक्रम संवत् 1327 में नालबदेश में देवेंद्रसूरि स्वर्गवासी हुए। दैवयोग से विद्यापुर में तेरह दिन पीछे श्री विद्यानंदसूरि भी स्वर्गवासी हुये / तब छ मास पीछे सगोत्रसूरिने श्री विद्यानंदसूरि के भाई धर्मकीर्ति उपाध्याय को सूरिपद दे के धर्मघोपसूरि नाम दिया। , श्री देवेंद्रसूरि के पाट ऊपर मी धर्मघोषसूरि हुए, जिन्होंने मंडपाचल में शा. पृथवीयर को पंचमानुश्री धर्मघोषरि व्रत लेते हुए ज्ञान से निषेध करा / क्योंकि