________________ द्वादश परिच्छेद 500 सूरि आये, तब वंदना करने को भी नहीं आया / तब देवेंद्रसूरिजीने कहला मेजा कि एक वस्ती में तुम बारह वर्ष कैसे रहे ! तब विजयचंद्रने कहा कि शांत दांतों को वारह वर्ष एक जगह में रहने से कुछ दोष नहीं / संविग्नसाधु सर्व देवेंद्र सूरि के साथ रहे, और देवेंद्रसूरिजी तो अनेक संविग्न साधु समुदाय के साथ उपाश्रय में ही रहे। तब लोकोंने बडी शाला में रहने से विजयचंद्रसूरि के समुदाय का नाम वृद्ध पौशालिक रक्खा और देवेंद्रसूरिजी के समुदाय का लघुपौशालिक नाम दिया। और स्थंमतीर्थ के चौक में कुमारपाल के विहार में धर्मदेशना में मंत्री वस्तुपालने चारों वेदों का निर्णय दायक, स्वसमय परसमय के जानकार देवेंद्रसूरिजी को वंदना दे के बहुमान दिया। और देवेंद्रसूरिजी विजयचंद्र की उपेक्षा करके विचरते हुये क्रम से पाल्हणपुर में आये। तहां चौरासी इभ्य सेठ अनेक पुरुषों के साथ परिवरे, सुखासन ऊपर बैठे हुये शास्त्र के बड़े श्रोता व्याख्यान सुनने आते थे / और पालनपुर के विहार में रोज की रोज एक मूढक प्रमाण अक्षत और सोलह मन सोपारी दर्शन करनेवाले श्रावकों की चढाई चढ़ती थी, इत्यादि। बड़े धर्मी लोगोंने गुरु को विनति करी कि हे भगवन् ! यहां आप किसी को आचार्य पदवी देकर हमारा मनोरथ पूरा करो। तब गुरुने उचित जान के पालनपुर में विक्रम संवत् 1323 में विद्यानंदसूरि नाम दे के वीरधवल को सूरिपद दीना, और