________________ 504 जैनतत्त्वादर्श . समुद्र हुआ / तिनका विक्रमसंवत् 1145 में जन्म, 1150 में दीक्षा, 1166 में सूरिपद अरु 1229 में स्वर्गवास हुआ। इनों का सम्पूर्ण प्रबन्ध देखना होवे, तदा श्री प्रबन्धचिंतामणि तथा कुमारपालचरित्र देख लेना। 41. श्री मुनिचन्द्रसूरि के पाट ऊपर अजितदेवसूरि हुये / तिनों के समय में संवत् 1204 में खरतरोत्पत्ति, संवत् 1233 में आंचलिकमतोत्पत्ति, संवत् 1636 में सार्द्धपौ. र्णिमीयक मतोत्पत्ति, संवत् 1250 में आगमिक मतोत्पत्ति हुई। तथा वीरमगवान् से 1692 वर्ष पीछे वाग्भट मन्त्रीने शत्रुजय का चौदहवां उद्धार कराया, साढे तीन क्रोड़ रूपक लगाया। 42. श्री अजितदेवसूरि के पाट ऊपर विजयसिंहसूरि हुये, जिनोंने विवेकमंजरी शुद्ध करी / जिनोंका बड़ा शिष्य सोमप्रभसूरि शतार्थितया प्रसिद्ध था अर्थात् जिनों के बनाये एक एक श्लोकों के सौ सौ तरे के अर्थ निकलें, और दूसरा मणिरत्नसूरि था। __43. श्री विजयसिंहसूरि के पाट ऊपर सोमप्रभसूरि और मणिरलसूरि हुये। 14. श्री सोमप्रभ तथा मणिरत्नसूरि के पाट ऊपर जगचन्द्रसूरि हुये। जिनोंने अपने गच्छ श्री जगचन्द्रसूरि को शिथिल देख के और गुरु की आज्ञा से और तपागच्छ वैराग्य रस के समुद्र चैत्रवाल गच्छीय देव मद्र उपाध्याय की सहाय से क्रिया का उद्धार