________________ द्वादश परिच्छेद 503 उत्पत्ति हुई / तिस चन्द्रप्रम के प्रतिवोधने वास्ते मुनिचन्द्रसरिजीने पाक्षिकसप्ततिका करी / तथा श्री मुनिचन्द्रसूरि का शिष्य अजितदेवसूरि वादी अरु देवसूरि प्रमुख हुये / तहां वादी अजितश्री अजितदेवसूरि देवसूरिजीने अणहलपुर पाटन में जय सिंहदेव राजा की अनेक विद्वजनसंयुक्त सभा में चौरासी वाद वादियों से जीते / दिगम्बरमत के चक्रवर्ती कुमुदचन्द्र आचार्य को जिनोंने वाद में जीता, और दिगम्बरों का पट्टन में प्रवेश करना बंद कराया। सो आज तक प्रसिद्ध है / तथा विक्रम से 1204 वर्ष पीछे फलवद्धिग्राम में चैत्यविव की प्रतिष्ठा करी, सो तीर्थ आज भी प्रसिद्ध है / तथा आरासणे में नेमिनाथ की प्रतिष्ठा करी / तथा जिनोंने 84000 चौरासी हजार श्लोकप्रमाण स्याद्वादरलाकर नामा अन्य बनाया, तथा जिनों से बड़े नामावर चौवीस आचार्यों की शाखा हुई। इनों का जन्म संवत् 1134 में हुआ, सं० 1152 में दीक्षा लीनी, स. 1174 में सूरिपद मिला, सं० 1220 की श्रावण कृष्ण सक्षमी गुरुवार स्वर्ग को प्राप्त हुये। तिनों के समय में देवचन्द्रसूरि का शिष्य तीन क्रोड़ ग्रन्थ का कर्ता, कलिकाल में सर्वज्ञ विरुद श्री हेमचन्द्र- का धारक, पाटण के राजा कुमारपाल का सूरि प्रतिबोधक, सवा लक्ष लोकप्रमाण पंचांग व्याकरण का कर्ता श्री हेमचन्द्रसूरि विद्या