________________ 502 जैनतत्वादर्श 37. श्री सर्वदेवसूरि के पाट ऊपर देवसूरि हुए, तिन को रूपश्री ऐसा राजाने बिरुद दिया। 38. श्री देवसूरि के पाट ऊपर फिर सर्वदेवसूरि हुए, जिसने यशोभद्र, नेमिचंद्रादि आठ आचार्यों को आचार्य पदवी दीनी / तथा महावीर से 1496 वर्ष पीछे तक्षिला का नाम गजनी रक्खा गया। 39. श्री सर्वदेवसूरि के पाट ऊपर यशोभद्र अरु नेमिचंद्र ये दो गुरु भाई आचार्य हुये / तथा विक्रम से 1135 वर्ष पीछे [ कोई कहता है कि 1139 वर्ष पीछे ] नवांगीवृत्ति करनेवाला श्री अभयदेवसूरि स्वर्गवासी हुये। तथा कूर्चपुरगच्छीय चैत्यवासी जिनेश्वरसूरि के शिष्य जिनवल्लभसूरिने चित्रकूट में महावीर के षट् कल्याणक प्ररूपे / 40. श्री यशोभद्रसूरि तथा नेमिचन्द्रसूरि के पाट ऊपर मुनिचन्द्रसूरि हुये। जिनोंने जावश्री मुनिचन्द्रसूरि जीव एक सौ बार पानी पीना रक्खा, और सर्व विगय का त्याग करा / तथा जिनोंने हरिभद्रसूरिकृत अनेकांतजयपताकादि अनेक अन्थों की पंजिका करी, उपदेशपद की वृत्ति, योगबिंदु की वृत्ति, इत्यादिकों के करने से तार्किकशिरोमणि जगत् में प्रसिद्ध हुए। और यह आचार्य बड़ा त्यागी और निःस्पृह हुआ / यहां विक्रम राजा से 1159 वर्ष पीछे चन्द्रप्रभ से पौर्णिमीयक मत की