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________________ द्वादश परिच्छेद 499 विद्यासमुद्रहरिभद्रमुनींद्रमित्रं, सरिबभूव पुनरेव हि मानदेवः / मांद्यात्प्रयातमपि योनघसरिमंत्रं, ले विकामुखगिरा तपसोजयते / श्रीमहावीर से एक हजार वर्ष पीछे सत्यमित्र आचार्य के साथ पूर्वो का व्यवच्छेद हुआ / यहां 1. नागहस्ति, 2. रेवतीमित्र, 3. ब्रह्मद्वीप, 4. नागार्जुन, 5. भूतदिन्न, 6. कालिकसूरि, ये छ युगप्रधान यथाक्रम से वज्र सेनसूरि और सत्यमित्र के बीच में हुए / इन पूर्वोक्त छ युगप्रधानों में से शक्राभिवंदित और प्रथमानुयोग सूत्रों का सूत्रधार कल्प कालिकाचार्य ने महावीर से 993 वर्ष पीछे पंचमी से चौथ की संवत्सरी करी / तथा महावीर से 1055 वर्ष पीछे और विक्रमादित्य से 585 वर्ष पीछे याकनी साध्वी का धर्मपुत्र हरिभद्रसूरि स्वर्गवास हुए / तथा 1115 वर्ष पीछे जिनभद्रगणि युगप्रधान हुआ। और यह जिनमद्रीय ध्यान. शतक का कर्ता होने से और हरिभद्रसूरि के टीका करने से दूसरा जिनभद्र है, यह कथन पट्टावलि में है। परन्तु जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण की आयु 104 वर्ष की थी, इस वास्ते जेकर हरिभद्रसूरि के वक्त में जीते हो तो भी विरोध नहीं। / / 28. श्रीमानदेवसूरि के पाट ऊपर विबुधप्रभसूरि हुआ।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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