SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 498 जैनतत्वादर्श संवत् के तीन सौ वर्ष पीछे नागपुर में श्री नमि अर्हत की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करी / यदुक्तं नागपुरे नमिमवनप्रतिष्ठया महितपाणिसौभाग्यः / अमवद्वीराचार्यत्रिभिः शतैः साधिकै राज्ञः // 22. श्रीवीरमरि के पाट ऊपर जयदेवसूरि बैठे। 23. श्रीजयदेवसूरि के पाट अपर देवानंदसूरि बैठे। इस अवसर में महावीर से 845 वर्ष पीछे वल्लभी नगरी भंग हुई, तथा 882 वर्ष पीछे चैत्य स्थिति, तथा 886 वर्ष पीछे ब्रह्मद्वीपिका। 24. श्रीदेवानंदसूरि के पाट ऊपर विक्रमसूरि बैठे। 25. श्रीविक्रमसूरि के पाट ऊपर नरसिंहसूरि बैठे, यतानरसिंहसरिरासीदतोऽखिलग्रंथपारगो येन / यक्षो नरसिंहपुरे, मांसरतिस्त्याजित: स्वगिरा // 26. श्रीनरसिंहसूरि के पाट ऊपर समुद्रसूरि बैठा / खीमीणराजकुलजोऽपि समुद्रसरि गच्छं शशास किल यः प्रवणः प्रमाणी / जित्वा तदाक्षपणकान् स्ववशं वितेने, नागदे भुजगनाथनमस्यतीर्थम् // 27. श्रीसमुद्रसूरि के पाट ऊपर मानदेवसूरि हुए।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy