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________________ द्वादश परिच्छेद 497 करा कि भक्तिवाले घर की मिशा और दूध, दही, घृत, मीठा, तेल, अरु सर्व पक्वान्न का त्याग किया / तब तिनके तप के प्रभाव से नडोलपुर जो पाली के पास है, तिस में-१. पद्मा, 2. जया, 3. विजया, 4. अपराजिता ये चार नाम की चार देवी सेवा करती देखीं। कोई मूर्ख कहने लगा कि यह आचार्य सियो का संग क्यो करता है ! तव तिन देवियोंने तिसको शिक्षा दीनी / तथा तिसके समय में तक्षिला (गजनी ) नगरी में बहुन श्रावक थे, तिन में मरी का उपद्रव हुआ। तिसकी गांति के वास्ते मानदेवसूरिने नडोल नगरी से गांतिम्तोत्र बना कर भेजा। 20. श्री मानदेवमरि के पाट ऊपर मानतुंगसूरि हुये, जिनोंने भक्तामर स्तवन करके वाण अरु श्रीनामनुगतर मयूर पडितों की विद्या करके चमत्कृत हुआ जो वृद्ध भोजराजा तिनको प्रतिबोधा, और भयहर स्तवन करके नाग राजा वश करा / तथा भतिभरेत्यादि स्तवन जिनाने करे है। प्रभावक चरित्र में प्रथम मानतुंगसरि का चरित्र कहा है और पीछे देवसूरि के शिप्य प्रद्योतनसूरि, तिनके शिष्य मानदेवरि का प्रबंध कहा है / परन्तु तहां शंका न करनी चाहिये, क्योंकि प्रभावक चरित्र में और भी कई प्रवन्ध आगे पीछे कहे हैं। 21. श्रीमानतुंगसूरि के पाट ऊपर वीरसूरि बैठा। तिस वीरसूरिने महावीर से 700 वर्ष पीछे तथा विक्रम
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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