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________________ 496 जैनतत्वादर्श हुये / महावीर से 584 वर्ष पीछे सातवां निन्हव हुआ। तथा महावीर से 609 वर्ष पीछे कृष्णसूरि का शिष्य शिवमूति नामक था, तिसने दिगंबर मत प्रवृत्त करा, सो अधिकार विशेषावश्यकादिकों से जान लेना। 15. श्रीवज्रसेनसूरि के पाट ऊपर चन्द्रसूरि बैठा / तिनके नाम से गच्छ का तीसरा नाम चंद्रगच्छ हुआ / 16. श्रीचन्द्रसूरि के पाट ऊपर सामंतभद्रसूरि हुये। वे पूर्वगत श्रुत के जानकार थे / वैराग के रंग से निर्मल हुए जङ्गलों में रहते थे / तब लोगोंने चन्द्रगच्छ का नाम वनवासीगच्छ रक्खा / 17. श्रीसामंतभद्र सूरि के पाट ऊपर वृद्धदेवसूरि हुये। तथा महावीर से 595 वर्ष पीछे कोरंट नगर में नाहड नामा मंत्रीने तथा सत्यपुर में नाहड मन्त्रीने मंदिर बनवाया, प्रतिमा की प्रतिष्ठा जज्जकसूरिने करी, प्रतिमा महावीर की स्थापन करी, जिस को " जयउ वीरसञ्चउरिमंडण" कहते हैं। 18. श्रीवृद्धदेवमूरि के पाट ऊपर प्रद्योतनसूरि हुये / 19. श्री प्रद्योतनसरि के पाट ऊपर मानदेवमरि हुये। इन के सूरिपद स्थापनावसर में दोनों स्कंधों श्रीमानदेष पर सरस्वती और लक्ष्मी साक्षात् देख के यह चारित्र से भ्रष्ट हो जावेगा, ऐसा विचार करके खिन्नचित्त गुरु को जान के गुरु के आगे ऐसा नियम
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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