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________________ द्वादश परिच्छेद 495 तव तिस रोहगुप्तने कणाद नाम शिष्य करा / उसको-१, द्रव्य, 2. गुण, 3. कर्म, 4. सामान्य, 5. विशेष, 6. समवाय, इन षट् पदार्थों का स्वरूप बतलाया, तब तिस कणादने वैशेषिक सूत्र बनाये, तहां से कैशेषिक मत चला। 14. श्रीवज्रस्वामी के पाट ऊपर चौदवें वज्रसेनसूरिजी बैठे। वे दुर्भिक्ष में वज्रस्वामी के वचन से श्रीवजमेनसूरि सोपारक पत्तन में गये। तहां जिनदत्त के घर में ईश्वरी नामा तिसकी भार्याने लाख रूपक के खरचने से एक हांडी अन्न की रांधी। जिस में विप ( जहर ) डालने लगी। क्योंकि उनोंने विचारा था कि अन्न तो मिलता नहीं, तिस वास्ते जहर खाके सर्व घर के आदमी मर जायेंगे / तिस अवसर में वज्रसेनसूरि तहां आये। वो उनको कहने लगे कि तुम जहर मत खाओ, कल को सुकाल हो जावेगा / तैसे ही हुआ। तव तिन सेठ के चार पुत्रोंने दीक्षा लीनी, तिन के नाम लिखते हैं:-१. नागेंद्र, 2. चन्द्र, 3. निवृत्त, 4. विद्याधर | तिन चारों से स्व स्व नाम के चार कुल बने। यह वज्रसेनसूरि नव वर्ष तक गृहस्थावास में रहे, और 116 वर्ष समान साधुव्रत में रहे, तथा तीन वर्ष युगप्रधान पदवी में रहे, सर्व आयु 128 वर्ष की भोग के महावीर से 620 वर्ष पीछे स्वर्ग गये। यहां श्रीवजस्वामी और वज्रसेनसूरि के बीच में आर्य रक्षितसूरि तथा दुर्बलिकापुण्य सूरि, यह दोनों युगप्रधान
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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