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________________ 492 जैनतत्त्वादर्श हुमा / इस अवसर में महावीरजी से चार सौ त्रेपन (453) वर्ष पीछे गर्दभिल्ल राजा के उच्छेद करनेवाला दूसरा कालिकाचार्य हुआ। इस की कथा कल्पसूत्र में प्रसिद्ध है। और महावीर से 453 वर्ष पीछे भृगुकच्छ ( भडौच ) में श्री आर्य खपुटाचार्य विद्याचक्रवर्ती हुआ / इन का प्रबन्ध प्रबन्धचिंतामणि ग्रंथ तथा हारिभद्री आवश्यक की टीका से जान लेना / और प्रभावक चरित्र में ऐसा लिखा है कि, महावीर से 484 वर्ष पीछे खपुटाचार्य और 467 वर्ष पीछे आर्यमंगु, वृद्धवादी, पादलित तथा कल्याणमन्दिर का कर्ता, ऊपर जिस का प्रबन्ध लिख आये हैं, सो सिद्धसेन दिवाकर हुआ। जिनोंने विक्रमादित्य को जैनधर्मी करा / सो विक्रमा'दित्य महावीर से 470 वर्ष पीछे हुआ। सो 470 वर्ष ऐसे हुये हैं:जिस रात्रि में श्री महावीर का निर्वाण हुआ, उस दिन अवन्ति नगरी में पालक नामा राजा को विक्रमादित्य राज्याभिषेक हुआ। यह पालक चंद्रप्रयोत का का समय पोता था। तिसका राज्य 60 वर्ष रहा। तिसके पीछे श्रेणिक का बेटा कोणिक और कोणिक का बेटा उदायी, जब बिना पुत्र के मरा तब तिस की गद्दी ऊपर नंद नामा नाई बैठा। तिनकी गद्दी में सर्व नंद नामा नव राजे हुए / तिनका राज्य 155 वर्ष तक रहा। नवमें नंद की गद्दी ऊपर मौर्यवंशी चंद्रगुप्त राजा
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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