________________ 453 द्वादश परिच्छेद स्फुरति वादिखद्योता, सांप्रतं दक्षिणापथे। जब बार बार यह अर्ध श्लोक सुना तब सिद्धसेन की बहिन साध्वीने सिद्धसारस्वत मन्त्र से अर्द्ध श्लोक पूरा करा नूनमस्तंगतो वादी सिद्धसेनो दिवाकरः॥ पीछे तिस भट्टने सर्व वृत्तांत सुनाया तब संघ को बड़ा शोक हुआ। यह सिद्धसेन दिवाकर का प्रसंग से सम्बन्ध कथन करा। यह सुहस्ति आचार्य तीस वर्ष गृहस्थावास में रहे, और चौवीस वर्ष व्रतपर्याय, तथा छैतालीस वर्ष युगप्रधान पदवी, सब मिल कर एक सौ वर्ष की आयु भोग के महावीरजी से दो सौ एकानवे ( 291 ) वर्ष पीछे स्वर्ग गये, ये आठमे पाट पर मार्य महागिरि और सुहस्ति आचार्य हुए। 9. श्री सुहस्तिसूरि के पाट ऊपर श्री सुस्थित और सुप्रतिबद्ध नामा दो शिष्य बैठे। तिनोंने कोड़ों बार सूरि. मन्त्र का जाप करा, इस वास्ते गच्छ का 'कोटिक ' ऐसा दूसरा नाम संघने रक्खा, क्योंकि सुधर्मास्वामी से लेकर आठ पाट तक तो अनगार निर्मथगच्छ नाम था, पीछे दूसरा कोटिक नाम हुआ। 10. श्री सुस्थितसूरि के पाट ऊपर श्री इंद्रदिवसरित ...