________________ 488 जैनतत्त्वादर्श दिवाकर को संघ ने जिनधर्म की प्रभावना से तुष्टमान हो कर संघ में लिया, अरु पूर्ववत् आचार्य बनाया। एक समय श्रीसिद्धसेन दिवाकर विहार करते हुये मालवे के देश में जो ॐकार नामक नगर है, तहां गये। तिस नगर के भक्त श्रावकोंने आचार्य को विनति करी कि, हे भगवन् ! इसी नगर के समीप एक गाम था, तिस में सुन्दर नामा राजपुत्र ग्रामणी था, तिसकी दो स्त्रियां थीं। एक स्त्री के प्रथम पुत्री जन्मी वो स्त्री मन में खिजी। तिस अवसर में उसकी सौकन भी प्रसूत होनेवाली थी। तब तिस बेटी. वालीने विचारा कि इस के पुत्र न होवे, तो ठीक है। क्योंकि नहीं तो यह पति को वल्लभ हो जावेगी। तब दाई से मिल के उस से पैदा हुए पुत्र को बाहिर गिरा दिया, और तत्काल का मरा हुआ लड़का उसके आगे रख दिया। पीछे जौनसा लड़का बाहिर गेरा गया था, उसको कुलदेवीने गौ का रूप करके पाला / जब आठ वर्ष का हुआ, तब इस ॐकार नगर के शिवमवन के अधिकारी भरटने देखा और अपना चेला बना लिया। एकदा आंखों से अंधे कान्यकुब्ज देश के राजाने दिग्विजय के कार्य से तहां पड़ाव करा / तब रात्रि में उस छोटे चेले को शिवभक्त व्यंतर देवताने कहा कि, शेष भोग राजा को देना, उसकी आंखें अच्छी हो जावेगी। तैसे ही करा, तिससे राजा की आंखें अच्छी हो गई। तब राजाने सौ