________________ 580 जैनतत्त्वादर्श / फिर भी बोले और नाचने लगेकालो कंबल नीचोव, छाछे भरिउ दीवडो थट्ट / एवड पडीओ नीले झाड, अवर किसो छ सग्ग निलाड // यह सुन कर गोप बहुत खुशी हुये और कहने लगे कि वृद्धवादी सर्वज्ञ है। इसने कैसा मीठा कानों को सुखदायी हमारे योग्य उपदेश कहा, और सिद्धसेन तो कुछ नहीं जानता / तब सिद्धसेनजीने वृद्धवादी को कहा कि हे भगवान् ! तुम मुझ को दीक्षा दे के अपना शिष्य बनाओ। क्योंकि मेरी प्रतिज्ञा थी कि जो गोप मुझे हारा कहेंगे, तो मैं हारा, और तुमारा शिष्य बनूंगा / यह सुन कर वृद्धवादीने कहा कि भृगुपुर में राजसमा के बीच तेरा मेरा वाद होवेगा / क्योंकि इन गोप की सभा में बाद ही क्या है ! तब सिद्धसेनने कहा कि मैं अवसर नहीं जानता, अवसर के ज्ञाता हो, इस वास्ते मैं हारा। पीछे वृद्धवादीने राजसभा में उसका पराजय करा / तब सिद्धसेनने दीक्षा लीनी / गुरुने उनका नाम कुमुदचन्द्र दिया। पीछे जब आचार्य पदवी दीनी, तब फिर सिद्धसेन दिवाकर नाम रक्खा। पीछे वृद्धवादी तो और कहीं को विहार कर गये, और सिद्धसेन दिवाकर अवंति-उज्जैन में गये / श्रीसिद्धसेन और तब उज्जैन का संघ सन्मुख आया, और विक्रमराजा सिद्धसेन दिवाकर को सर्वज्ञपुत्र, ऐसा बिरुद दिया, ऐसा बिरुद बोलते हुए अवंतिनगरी