________________ 479 द्वादश परिच्छेद और ऐसा जानता था कि मेरे समान वुद्धिमान् कोई भी नहीं, और जो मुझ को वाद में जीत लेवे, तो मै उसका ही शिष्य बन जाऊंगा / पीछे तिसने वृद्धवादी की बहुत कीर्ति सुनी, उनके सन्मुख जानेवास्ते सुखासन ऊपर बैठ के भृगुकच्छ( भडौच ) की तरफ चला जाता था। तिस अवसर में वृद्धवादी भी रस्ते में सन्मुख आता हुआ मिला, तब आपस में दोनों का आलापसंलाप हुआ। पीछे सिद्धसेनजीने कहा कि मेरे साथ तुम वाद करो। तब वृद्धवादीने कहा कि बाद तो करूं, परंतु इस जंगलमें जीते हारे का कहनेवाला कोई साक्षी नहीं। तब सिद्धसेनजीने कहा कि यह जो गौ चरानेवाले गोप हैं, ये ही मेरे तुमारे साक्षी रहे, ये जिसको हारा कह देंगे सो हारा। तव वृद्धवादीने कहा कि बहुत अच्छा, ये ही साक्षी रहे / अब तुम वोलो / तब तुम सिद्धसेनजीने बहुत सस्कृत भाषा बोली और चुप हुआ। तव गोपोंने कहा कि यह तो कुछ भी नहीं जानता, केवल ऊंचा बोल के हमारे कानों को पीड़ा देता है / तब गोप कहने लगे कि हे वृद्ध ! तूं बोल। पीछे वृद्धवादी अवसर देख के कच्छा बांध कर तिन गोपों की भाषा में कहने लगे, और थोडे थोडे कूदने भी लगे। जो छंद उच्चारा सो कहते हैं नवि मारिये नत्रि चौरिये, परदारागमण निवारिये / थोवाथोवं दाइयइ सम्गि मट्टे मट्टे जाइयइ / /