________________ 478 जैनतत्त्वादर्श संप्रति राजा का वृत्तांत परिशिष्ट पर्वादि ग्रन्थों से समग्न नान लेना। तिस ही श्रीमुहस्तिसूरि आचार्यने उज्जैन की रहनेवाले भद्रा सेठानी का पुत्र अवन्तिसुकुमाल को दीक्षा दीनी। और जहां उस अवन्तिसुकुमालने काल करा था, तिस जगे तिस अवन्तिसुकुमाल के महाकाल नामक पुत्रने जिनमन्दिर बनवाया, और तिस मंदिर में अपने पिता के नाम से अवंति पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापन करी / कालांतर में ब्राह्मणोंने अपना जोर पा कर तिस मंदिर में मूर्ति को हेठ दाव कर ऊपर महादेव का लिंग स्थापन करके महाकाल( महादेव) का मंदिर प्रसिद्ध कर दिया। पीछे जब राजा विक्रम उज्जैन में राजा हुआ, तिस अवसर में कुमुदचंद्र अर्थात् सिद्धसेन दिवाकर नामा जैनाचार्यने कल्याणमंदिर स्तोत्र बनाया, तब शिव का लिग फट कर बीच में से पूर्वोक्त पार्श्वनाथ की मूर्ति फिर प्रगट हुई। इस का संबन्ध ऐसा है। विद्याधर गच्छ में स्कंदिला चार्य, तिनका शिण्य वृद्धवादी आचार्य था / श्री वृद्धवादी और तिस अवसर में उज्जैन का राजा विक्रमादित्य श्री सिद्धसेन था, तिसका मन्त्री कात्यायन गोत्री देव ऋषि नामा ब्राह्मण, तिसकी देवसिका नामा क्षी, तिनका पुत्र सिद्धसेन, सो विद्या के अभिमान से सारे जगत् के लोगों को तृणवत्( घासफूस समान ) समझता था,