________________ 47 बादश परिच्छेद कुणाल, तिस कुणाल का बेटा संप्रति राजा हुआ। तिस संपत्ति राजाने जैनधर्म की बहुत वृद्धि करी। क्योंकि कल्पसूत्र के प्रथम उद्देश में श्री महावीर के समय में अव की निसबत बहुत थोडे देशों में जैनधर्म लिखा है। मारवाड़, गुजरात, दक्षिण, पंजाब वगैरे देशों में जो जैनधर्म है, सो संप्रति राजा ही से फैला है / यद्यपि इस काल में जैनी राजा के न होने से जैनधर्म सर्व जगे नहीं है। परन्तु संप्रति राजा के समय में बहुत उन्नति पर था। क्योंकि संप्रति राजा का राज्य मध्यखण्ड और गंगा पार और सिंधु पार के सर्व देशों में था। संपति राजाने अपने नौकरों को जैन के साधुओ का वेष बना कर अपने सेवक राजाओं के जो शक, यवन, फारसादि देश ये, तिन देशों में भेजा / तिनोंने तिन राजाओ को जैन के साधुओं का आहारविहार, आचारादि सर्व बताया और समझाया / पीछे से साधुओं का विहार तिन देशों में करा कर लोगों को जैनधर्मी करा / और संप्रति राजाने निन्यानवे हजार (99000) जीर्ण जिनमन्दिरों का उद्धार कराया अर्थात् पुराने दूटों फूटको नवा बनाया। और छब्बीस हजार ( 26000) नवीन जिनमन्दिर बनवाये। और सोने, चांदी, पीतल, पाषाण, प्रमुख की सवा कोड प्रतिमा बनवाई। तिसके बनवाये मन्दिर नडौल, गिरनार, शत्रुजय, रतलाम प्रमुख अनेक स्थानों में खडे हमने अपनी आंखों से देखे हैं। और संपति की वनवाई जिनप्रतिमा तो हमने सैंकडों देखी हैं। इस