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________________ द्वादश परिच्छेद 475 वर्ष रहे, सतरा वर्ष व्रतपर्याय, अरु चौदह वर्ष युगप्रधान, सब मिल कर 76 वर्ष की आयु भोग के श्री महावीर से 170 वर्ष पीछे स्वर्ग गये। 7. यह श्री संभूतविजय अरु भद्रबाहुस्वामी के पास ऊपर श्रीस्थूलभद्रस्वामी बैठे / इनका बहुत श्री स्थूलभद्र वृत्तांत है, सो परिशिष्टपर्व ग्रंथ से जान लेना / श्री स्थूलभद्रस्वामी तीस वर्ष गृहस्थावास में रहे, चौबीस वर्ष व्रतपर्याय, अरु पैतालीस वर्ष युगप्रधान पदवी, सब आयु 99 वर्ष भोग के श्रीमहावीर से 215 वर्ष पीछे स्वर्ग गये। 1. प्रभव स्वामी, 2. शय्यंभव स्वामी, 3. यशोभद्र: स्वामी, 1. समूतविजय, 5. भद्रबाहु स्वामी, 6. स्थूलभद्र, यह छ आचार्य चौदह पूर्व के वेत्ता थे। श्री महावीर से दो मौ चौदह वर्प पीछे आपाढाचार्य के शिष्य तीसरे निन्हव हुये। __म्यूलिभद्र के वक्त में नव नन्दों का एक सौ पंचावन (155) वर्ष का राज्य उच्छेद करके चाणक्य ब्राह्मणने चन्द्रगुप्त राजा को राजसिंहासन ऊपर विठाया, और चन्द्रगुप्त के सन्तानोंने एक सौ आठ वर्ष तक राज्य किया / चन्द्रगुप्त मोरपाल का वेटा था, इस वास्ते चन्द्रगुप्त के वंश को मौर्यवंश कहते हैं। यह चन्द्रगुप्त जैनमत का धारक श्रावक राजा था / इस चन्द्रगुप्त तथा नव नन्द का वृत्तांत देखना होवे, तदा
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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