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________________ 474 जैनतत्यादर्श वर्ष की आयु भोग के श्रीमहावीर से 148 वर्ष पीछे स्वर्ग गये। 6. श्रीयशोभद्रस्वामी के पाट ऊपर एक श्री संभूतविजय और दूसरे श्रीभद्रबाहु, यह दोनों बैठे। श्री सभूतविजय तिनमें संभूतविजय तो बैतालीस वर्ष तक श्री भद्रवाहु गृहस्थ रहे, और चालीस वर्ष व्रतपर्याय तथा आठ वर्ष युगप्रधान पदवी सर्व आयु नव्वे वर्ष भोग के स्वर्ग में गये। और भद्रबाहुस्वामीने१. आवश्यक नियुक्ति, 2. दशवकालिक नियुक्ति, 3. उत्तराध्ययन नियुक्ति, 4. आचारांग की नियुक्ति, 5. सूत्रकृदंग नियुक्ति, 6. सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति, 7. ऋषिभाषित नियुक्ति, 8. कल्प नियुक्ति, 9. व्यवहार नियुक्ति, 10. दशा नियुक्ति, ये दश नियुक्तियां और 1. कल्प, 2. व्यवहार, 3. दशाश्रुतस्कंध, यह नवमे पूर्व से उद्धार करके बनाये / और एक बहुत बड़ा भद्रबाहु नामक संहिता ज्योतिषशास्त्र बनाया / उपसर्गहर स्तोत्र बनाया / जैनियों के ऊपर बहुत उपकार करा / इन ही भद्रबाहुजी का सगा माई वराहमिहर हुआ। वो पहिले तो जैनमत का साधु हुआ था, फिर साधुपना छोड़ के वराही संहिता बनाई। और जो वराहमिहर विक्रमादित्य की सभा का पंडित था, वो दूसरा वराहमिहर था, संहिताकारक वो नहीं हुआ / इसका सम्पूर्ण वृत्तांत परिशिष्टपर्व से जान लेना / श्री भद्रबाहुस्वामी गृहस्थावास में पैतालीश
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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