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सप्तम परिच्छेद
૨૨ तथा कितनेक जीवों के मन में ऐसी भी शंका होवे,
तो उसका क्या समाधान है ! जैसे कि आधुनिक भूगोल जैनमत वाले भारतखंड कहां तक मानते हैं ! तथा जैन क्योंकि अमेरिका, रूस, चीन आदि जो देश मान्यता इस काल में लोगों के देखने वा सुनने में
आते हैं, जैनलोक उन सब को भारतवर्ष में ही मानते हैं । तथा अमेरिका, विलायतादि सर्व मुलकों के वीच में जो समुद्र पड़ा है, सो ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती के समय में नहीं था, किंतु जगत के बाहिर जो महासमुद्र है, सोई था। इस कारण से अर्थात् समुद्र के अंदर आजाने से असली भरतक्षेत्र का स्वरूप बिगड़ गया-कहीं समुद्र हो गया, और कहीं द्वीप बन गये । ___ इस विषय जैनमत का शत्रुजयमाहात्म्य नामा ग्रंथ है, तिसमें लिखा है, कि दूसरा सगरनामा चक्रवर्ती हुआ है, वह इस समुद्र को भारतवर्ष में जंबूद्वीप के दक्षिण दिशा के विजयंत नामक दरवाजे के रास्ते से लाया है। तिसके लाने से वर्वरादि अनेक हजारों देश तो जल में डूब कर समुद्र की भूमिका वन गये, और जो उच्चस्थल थे, वे द्वीप
और विलायतादि देश बन गये। पीछे से असली देशों का नाम नष्ट होने से बहुत देशों के नाम कल्पित रक्खे गये। भरतखंड कुछ और का और बन गया । कितनेक देशों के उत्तर खंडों में बर्फ के पड़ जाने से, और समय के बदलते
और कहीं बाप का स्वरूप विगार के अंदर